अहोई अष्टमी 2024 व्रत नियम: व्रत से जुड़े महत्वपूर्ण नियम, ताकि अधूरा न रह जाए आपका व्रत
अहोई अष्टमी का व्रत महिलाओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे संतान की लंबी उम्र, सुरक्षा, और समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस दिन विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है ताकि व्रत सफलतापूर्वक संपन्न हो सके। इस लेख में हम आपको अहोई अष्टमी व्रत के नियम, पूजा विधि, और इस दिन के महत्व के बारे में विस्तार से बताएंगे।
अहोई अष्टमी व्रत के नियम (Ahoi Ashtami Vrat Niyam)
- निर्जला व्रत: अहोई अष्टमी का व्रत पूर्णतः निर्जला रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अन्न, फल, और दूध से बनी चीज़ों का सेवन नहीं करतीं। व्रत का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है और इसे तारों को अर्घ्य देने के बाद ही समाप्त किया जाता है।
- व्रत का समापन: रात में तारे निकलने के बाद ही व्रत समाप्त होता है। तारों को जल अर्पित करके और आशीर्वाद प्राप्त कर ही व्रत का पारण किया जाता है।
- पूजन विधि: शाम के समय अहोई माता की तस्वीर की स्थापना कर, 8 पूड़ी, 8 मालपुआ, दूध, और चावल का भोग अर्पित किया जाता है। पूजा के समय गेहूं के कुछ दाने भी रखे जाते हैं।
- दान और पुण्य: इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। संतान की खुशहाली के लिए दान पुण्य करें और नकारात्मक विचारों से बचें।
- सास को उपहार: पूजा के बाद अपनी सास को वस्त्र भेंट कर उनका आशीर्वाद लें।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व (Ahoi Ashtami Vrat Importance)
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से संतान की दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि इस दिन अहोई माता की पूजा करने से शीघ्र संतान प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
अहोई अष्टमी के दिन बन रहे विशेष योगों—सर्वार्थ सिद्धि योग, गुरु पुष्य योग, साध्य योग, और अमृत सिद्धि योग—के कारण इस वर्ष का व्रत और भी खास है। यह शुभ योग व्रत की महत्ता को और बढ़ा देते हैं।