लोक गायिका शारदा सिन्हा, छठ महापर्व की आवाज, 72 वर्ष की उम्र में निधन
लोक संगीत की दुनिया की एक अद्भुत और अनुपम आवाज, शारदा सिन्हा ने 72 वर्ष की आयु में हम सब को अलविदा कह दिया। शारदा सिन्हा, जिनकी आवाज हमेशा बिहार और झारखंड के लोग विशेष रूप से छठ महापर्व से जुड़ी हुई मानते थे, आज हमारे बीच नहीं रही। उनकी आवाज का जादू और उनके गीतों की गहराई भारतीय लोक संगीत की एक अमूल्य धरोहर बन गई है।
शारदा सिन्हा: छठ महापर्व की स्वर
शारदा सिन्हा को खास पहचान छठ पूजा के गीतों के लिए मिली। उनका गाया हुआ “ख़ुशबू छठ महापर्व की” या फिर “उगते सूरज की किरण से” जैसे गीत आज भी लोगों के दिलों में गूंजते हैं। छठ महापर्व के दौरान उनका संगीत और गीतों का योगदान एक अलग ही स्थान रखता है, और वह विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में लोक गायन की पहचान बन गई थीं।
शारदा सिन्हा का जन्म 1952 में बिहार के आरा जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी गायन यात्रा की शुरुआत बहुत छोटी उम्र में की थी, और अपनी मेहनत और समर्पण से उन्होंने लोक संगीत के क्षेत्र में एक मजबूत स्थान प्राप्त किया। उनका संगीत न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के साथ जुड़ा हुआ था, बल्कि उन्होंने भारतीय लोक संगीत के अन्य पहलुओं को भी अपनी आवाज दी थी।
संगीत यात्रा और योगदान
शारदा सिन्हा ने लोक गायन की दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। उन्होंने न केवल छठ महापर्व के गीतों को लोकप्रिय किया, बल्कि भजन, भोजपुरी गीत और कई अन्य पारंपरिक गीतों के जरिए भी अपना योगदान दिया। उनका संगीत लोगों के दिलों को छूता था और उनकी गायकी में एक सहजता और सरलता थी, जो आम लोगों से जुड़ती थी।
उनकी आवाज में एक विशेष मिठास और गहराई थी, जो उन्हें उनके समकालीन गायकों से अलग करती थी। शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी से न केवल बिहार और झारखंड बल्कि पूरे भारत में लोक संगीत की ख्याति बढ़ाई।
शारदा सिन्हा का योगदान
शारदा सिन्हा का संगीत हमेशा अपने इलाके की लोक संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाजों से जुड़ा हुआ था। उन्होंने अपनी गायकी के जरिए लोक संगीत को एक नया जीवन दिया और उसकी महत्ता को लोगों तक पहुंचाया। उनका संगीत हर त्योहार, खासकर छठ पूजा के समय, लोगों के घर-घर गूंजता था और हर घर में खुशी और आस्था का संचार करता था।
उनकी गायकी का एक खास पहलू यह था कि उन्होंने भोजपुरी संगीत को नई पहचान दी। उनके गीतों में प्राचीन लोक रचनाओं की संवेदनशीलता और आधुनिकता का बेहतरीन मिश्रण था, जो उन्हें सभी उम्र के लोगों में लोकप्रिय बनाता था।
निधन: एक युग का समापन
शारदा सिन्हा के निधन से संगीत जगत में एक युग का समापन हो गया है। उनका योगदान लोक संगीत में हमेशा याद किया जाएगा। उनका संगीत आज भी हमारे बीच जीवित रहेगा और वे हमेशा छठ महापर्व, भोजपुरी गीतों और भारतीय लोक संगीत की आवाज के रूप में याद की जाएंगी।
उनकी गायकी ने न केवल बिहार और झारखंड बल्कि पूरे देश के संगीत प्रेमियों के दिलों में अपनी एक अलग जगह बनाई। शारदा सिन्हा ने अपनी कला के माध्यम से भारतीय लोक संगीत को गौरवांवित किया और वह हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी।
शारदा सिन्हा के योगदान और उनके गीतों की याद हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में ताजे रहेंगे। उनके निधन से लोक संगीत को एक अपूरणीय क्षति हुई है।