सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: निजी संपत्ति पर सरकार का अधिकार सीमित

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता”

नई दिल्ली: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सभी निजी संपत्तियों का अधिग्रहण सरकार द्वारा नहीं किया जा सकता, भले ही इसका उद्देश्य आम कल्याण हो। 7:1:1 के बहुमत से सुनाए गए इस फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “सभी निजी संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता, भले ही राज्य सामुदायिक संसाधनों पर सार्वजनिक भलाई के लिए दावा कर सकता है।”

विवादास्पद प्रश्न का निपटारा

यह निर्णय उस कानूनी प्रश्न पर आधारित है कि क्या निजी संपत्तियों को “सामुदायिक संसाधनों” के रूप में माना जा सकता है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 39(बी) में उल्लेखित है, ताकि उन्हें राज्य प्राधिकरणों द्वारा आम कल्याण के लिए पुनर्वितरित किया जा सके।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की, जो संविधान के अनुच्छेद 31(सी) की कानूनी वैधता से संबंधित है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

अध्यक्ष न्यायाधीश चंद्रचूड़ और उनके छह सहयोगियों ने बहुमत में कहा कि “व्यक्ति के स्वामित्व वाले प्रत्येक संसाधन को केवल इसलिए सामुदायिक संसाधन के मानदंड पर खरा नहीं उतरता है क्योंकि यह किसी समुदाय की आवश्यकताओं के लिए योग्य है।”

1980 में मिनर्वा मिल्स मामला

सुप्रीम कोर्ट ने 1980 में मिनर्वा मिल्स मामले में दो प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया था, जो संविधान के 42वें संशोधन के तहत किसी भी संवैधानिक संशोधन को अदालत में चुनौती नहीं देने की बात करते थे।

अनुच्छेद 31(सी) का महत्व

अनुच्छेद 31(सी) उन कानूनों की रक्षा करता है जो अनुच्छेद 39(बी) और (सी) के तहत राज्य को सामुदायिक संसाधनों को अधिग्रहित करने का अधिकार देते हैं, जिसमें निजी संपत्तियां भी शामिल हैं।

न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 16 याचिकाएं सुनी, जिसमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स’ एसोसिएशन द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी। यह संघ राज्य के प्राधिकरणों को “सेस्ड बिल्डिंग” का अधिग्रहण करने का अधिकार देने वाले महाराष्ट्र हाउसिंग और एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) अधिनियम के अध्याय VIII-A का विरोध करता है।

निष्कर्ष

इस फैसले का प्रभाव यह है कि यदि सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधनों के रूप में मान लिया जाए, तो इससे भविष्य में निवेशकों का विश्वास प्रभावित हो सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि आर्थिक नीतियों को निर्धारित करना उसकी भूमिका नहीं है, बल्कि आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।

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